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राज्य में भूकंप से बढ़ा भूस्खलन का खतरा, IIT रुड़की के विशेषज्ञों ने जताई बड़ी आशंका

ByParyavaran Vichar

Sep 6, 2025

देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में भूकंप के बाद भूस्खलन का खतरा तेजी से बढ़ गया है। आईआईटी रुड़की के आपदा प्रबंधन और मानवीय सहायता उत्कृष्टता केंद्र के विशेषज्ञों ने अपनी एक शोध रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि आने वाले समय में राज्य के कई जिले भूकंप-प्रेरित भूस्खलन की बड़ी घटनाओं का सामना कर सकते हैं।

इस अध्ययन को आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं अक्षत वशिष्ठ, शिवानी जोशी और श्रीकृष्ण सिवा सुब्रमण्यम ने तैयार किया है, जो 2 अगस्त 2025 को एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ।


कौन से जिले सबसे ज्यादा संवेदनशील?

रिपोर्ट में उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों को भूकंप से संभावित भूस्खलन जोखिम के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।

  • रुद्रप्रयाग जिला – सबसे अधिक संवेदनशील
  • पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी – उच्च जोखिम वाले जिले

विशेषज्ञों ने बताया कि इन जिलों की भौगोलिक संरचना, ढलानों की स्थिति और भूकंप की तीव्रता, इन्हें भूस्खलन के लिहाज से बेहद असुरक्षित बनाती है।


अध्ययन की खास बातें

  • पहली बार जिला-स्तरीय जोनिंग कर यह आकलन किया गया है कि किस इलाके में कितना जोखिम है।
  • अलग-अलग भूकंपीय तीव्रता परिदृश्यों और भूकंप की वापसी अवधि (Return Period) के आधार पर संभावित खतरे का विश्लेषण किया गया।
  • अध्ययन ने संकेत दिया है कि यदि भविष्य में बड़े भूकंप आए तो यह केवल इमारतों को ही नुकसान नहीं पहुँचाएंगे, बल्कि बड़े पैमाने पर भूस्खलन और जनहानि का कारण भी बन सकते हैं।

विशेषज्ञों की चेतावनी

शोधकर्ताओं ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र दुनिया के सबसे भूकंपीय रूप से सक्रिय इलाकों में से एक है। यहाँ अक्सर छोटे-बड़े भूकंप आते रहते हैं, जिनसे पहाड़ कमजोर होते हैं और समय-समय पर भूस्खलन की घटनाएं सामने आती रहती हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि बड़े भूकंप की स्थिति बनी तो यह भूस्खलन आपदा का स्वरूप ले सकता है, जिससे सड़कों, पुलों, इमारतों और ग्रामीण आबादी को भारी नुकसान हो सकता है।


क्या है आगे की चुनौती?

विशेषज्ञ मानते हैं कि उत्तराखंड सरकार और आपदा प्रबंधन एजेंसियों को अब जिला-वार तैयारियों पर ध्यान देना होगा।

  • संवेदनशील इलाकों की पहचान कर वहाँ निर्माण पर रोक या कड़े नियम लागू करने होंगे।
  • सुरक्षा मानकों के अनुरूप सड़क और पुलों का निर्माण करना होगा।
  • स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण और पूर्व चेतावनी तंत्र (Early Warning System) को मजबूत करना होगा।
  • साथ ही, भविष्य में भूकंप और भूस्खलन-आधारित संयुक्त आपदा प्रबंधन योजना बनानी होगी।

 

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