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राज्य में प्राकृतिक खेती से महकेगी कपूर की खुशबू, किसानों को मिलेगा विकल्प, बढ़ेगी आमदनी

ByParyavaran Vichar

Jun 2, 2025

देहरादून। उत्तराखंड में आने वाले समय में प्राकृतिक खेती से कपूर की (वैज्ञानिक नाम सिन्नामोमम कैंफोरा) खुशबू महकेगी। एरोमा व औषधीष पौधों की खेती को बढ़ा रहे सगंध पौध केंद्र सेलाकुई को 10 साल के शोध के बाद राज्य में कपूर की खेती के लिए अच्छे नतीजे मिले हैं। इससे जंगली जानवरों के नुकसान से परेशान किसानों को पारंपरिक फसलों की जगह कपूर की खेती का विकल्प मिलेगा।

कपूर एक सुगंधित सदाबहार वृक्ष है। इसकी पत्तियों से तैयार तेल का इस्तेमाल पारंपरिक चिकित्सा, धार्मिक अनुष्ठान, साबुन, क्रीम व अन्य परफ्यूमरी उत्पादों में किया जाता है। देश में कपूर की खेती में कमी आई है। जिससे यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार है। सगंध पौध केंद्र की ओर से कपूर की प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने व संरक्षण पर शोध किया जा रहा है। खास बात यह है कि प्रदेश में कृषि का क्षेत्रफल लगातार कम हो रहा है। जंगली जानवरों के नुकसान व पहाड़ों में सिंचाई की सुविधा न होने के कारण किसान खेतीबाड़ी छोड़ रहे हैं।

इस समस्या के समाधान के लिए सगंध पौध केंद्र किसानों को एरोमा खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। कपूर के पौधों को जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। साथ ही पानी की जरूरत नहीं है। कपूर का पेड़ साल भर हरा भरा रहता है। जिससे पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
कई रोगों के लिए गुणकारी है कपूर

सगंध पौध केंद्र के शोध के अनुसार कपूर के पेड़ में तीन प्रकार के कीटोटाइप पाए गए हैं। इसमें पहला कैंफोरा टाइप पेड़, दूसरा 1.8 सिनेओल टाइप पेड़ और तीसरा कैंफोरा व सिनेओल दोनों की गुण प्रमुख मात्रा में पाए जाते हैं। यह वर्गीकरण कपूर के पेड़ में तेल गुणवत्ता के आधार पर किया गया। कपूर की पत्तियों के तेल में सिनेओल, लिनालूल, कैंफीन, टर्पीनियोल, सैफरोल मुख्य घटक हैं। जो एंटीसेप्टिक, दर्द निवारक, सूजनरोधी, त्वचा रोग, जोड़ों के दर्द, सांस संबंधित रोगों में लाभकारी है।

कपूर की पत्तियों को आसवन के बाद 2 से 3 प्रतिशत तक सगंध तेल प्राप्त होता है। बाजार में एक लीटर तेल की कीमत 800 से 1000 रुपये है। यदि किसान कपूर की खेती करते हैं तो सालाना 2.50 से तीन लाख रुपये तक आय प्राप्त कर सकते हैं।


उत्तराखंड में कपूर की खेती के लिए संस्थान पिछले 10 साल से शोध कर रहा है। अब शोध में अच्छे परिणाम सामने आए हैं। प्रदेश में कपूर की खेती जा सकती है। जो हिमालयी क्षेत्रों के किसानों के लिए एक विकल्प होगा। कपूर के पेड़ की बायोमास उत्पादन क्षमता उच्च होती है, जो इसे जैव ऊर्जा और औद्योगिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड में किसानों के लिए कपूर खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। -नृपेंद्र सिंह चौहान, निदेशक सगंध पौध केंद्र

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